रहीम कुशाग्र बुद्धि के थे, उन्होंने अपने बुद्धि विवेक के माध्यम से समाज को जोड़ने का सफल प्रयास किया। रहीम ने साहित्य तथा कला के क्षेत्र में भी अपना विशेष योगदान दिया। अपने समय में उन्होंने सफल शासन भी किया था। वह अकबर के समकालीन थे, प्रस्तुत लेख में हम रहीम के दोहे लिख रहे हैं जो सामाजिक सरोकार पर आधारित है।
रहिमन चुप हो बैठिये देखि दिनन के फेर दोहा व्याख्या सहित
रहिमन चुप हो बैठिये, देखि दिनन के फेर,
जब नाइके दिन आइहैं, बनत न लगिहैं देर। ।
समय का बड़ा महत्व है रहीम उसकी ओर संकेत करते हुए कहते हैं कि जब दिन ठीक ना हो तो चुपचाप बैठ जाना चाहिए। समय के फेर को देखना चाहिए कोई व्यक्ति कितना ही अत्याचारी क्रूर क्यों ना हो, कोई महिला कितनी भी अत्याचारी क्यों ना हो सबका दिन फिरता है। ठीक उसी प्रकार जैसे एक राजा को भी नई के आगे अपना सिर झुकाना पड़ता है।
यहां नाई को कमजोर माना गया है किंतु एक समृद्ध शक्तिशाली व्यक्ति भी उसके आगे सिर झुकाता है। इसी मर्म को रहीम दास ने पकड़ा है और नैतिक शिक्षा देने की कोशिश की है। आपको भी विकट परिस्थितियों में धैर्य धारण करना चाहिए क्योंकि धैर्य और समय आपके अत्याचारों का बदला अवश्य ले लेता है।
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उदाहरण 1 एक महिला अपने निर्दोष संत प्रवृत्ति से पति को नित्य प्रतिदिन प्रताड़ित करती थी। सास-ससुर को भी नियमित तंग किया करती थी क्योंकि वह बुजुर्ग थे। एक दिन ऐसा आया जब उसके एक्सीडेंट में हाथ पैर टूट गए। जब उसे अपने पति के सेवा आवश्यकता पड़ी सास ससुर की सेवा से वह ठीक हुई तो उसे अपनी गलती का एहसास हुआ।
रहिमन देख बड़ेन को, लघु न दीजिये डारि
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उदाहरण 2 एक व्यापारी को अपने व्यापार पर बहुत अधिक घमंड था, वह दिन भर लूट का धन इकट्ठा किया करता था। इसके कारण वह कितने ही लोगों के व्यापार के साथ खिलवाड़ और उसके साथ अत्याचार किया करता था। एक दिन व्यापार में हो रही धांधली को सरकार ने पकड़ लिया जिसके कारण उसका जमा-जमाया व्यापार ठप हो गया। यह समय का ही फेर है कि वह सेठ से भिखारी बन गया।
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निष्कर्ष
रहीम दास के बुद्धि की सराहना करनी चाहिए वह ऐसे उदाहरण के साथ अपनी बातों को रखते थे जिससे लोग आसानी से समझ सके। उन्होंने सामाजिक सरोकार से जोड़कर अपनी बातें कहीं। उनके दोहे पढ़कर स्पष्ट होता है कि वह सामाजिक सरोकार से कितने जुड़े थे। उनके दोहे की प्रासंगिकता आज भी है।
आज भी उनके दोहे पढ़कर प्रेरणा ली जा सकती है, उन्होंने उपरोक्त दोहे में समय के फेर को स्पष्ट किया है जिससे हमें समझने में सहूलियत होगी। कोई कितना भी गरीब और कमजोर क्यों ना हो, ईश्वर और समय दोनों उसके साथ होते हैं। समय बदलते देर नहीं लगता। उसके अत्याचारों का बदला समय अवश्य ले लेता है। जैसे एक अत्याचारी अपने बाहुबल और सामर्थ्य के बल पर लोगों को परेशान अवश्य कर सकता है किंतु अधिक समय तक हुआ इस अवस्था में नहीं रह सकता। समय उसकी अवस्था को परिवर्तित करता है और दंडित भी करता है।