कविता: नेता क्षमा करें – व्याख्या सहित संछेप

WhatsApp Group Join Now
Telegram Group Join Now

“नेता क्षमा करें” (neta ji kshama karen) प्रसिद्ध कविता की सरल व्याख्या आपको काफी सरल भाषा के साथ समझाने की कोशिश की है

रघुवीर सहाय गुलाम भारत के एक अद्वितीय कवि के रूप में सामने आते हैं, जिनकी रचनाएँ गहन प्रामाणिकता के साथ कैद से मुक्ति की ओर संक्रमण को गहराई से दर्शाती हैं। उनकी कविता स्वतंत्रता की भावना से गूंजती है, निस्संदेह उस युग और परिवेश से प्रभावित है जिसमें वह रहते थे।

उनके अस्तित्व का मूल भाव उनकी कविता में झलकता है। सीधी और हार्दिक अभिव्यक्ति के साथ, रघुवीर निडर होकर अपनी भावनाओं को व्यक्त करते हैं, जिससे उनकी कविता वास्तव में उल्लेखनीय हो जाती है। उनकी उल्लेखनीय कृतियों में ‘नेता, कृपया क्षमा करें’ शीर्षक वाली कविता है।

नेता क्षमा करें (neta ji kshama karen) ” प्रसिद्ध कविता की व्याख्या

लोगों मेरे देश के लोगों और इनके नेताओं

मैं सिर्फ एक कवि हूं

मैं तुम्हें रोटी नहीं दे सकता न उसके साथ खाने के लिए गम

न मैं मिटा सकता हूं ईश्वर के विषय मैं तुम्हारा संभ्रम

लोगों में श्रेष्ठ लोगों मुझे माफ करो ,

मैं तुम्हारे साथ आ नहीं सकता।

यानी कि आप ही सोचें कि जो कभी नहीं है

कि लोग सब एक तरफ और मैं एक तरफ

और मैं कहूं कि तुम सब मेरे हो

पूछिए , कौन हूं मैं ?

मैंने कोशिश की थी कि कुछ कहूं उनसे

लेकिन जब कहा तुमको प्यार करता हूं

मेरे शब्द एक लहरियाता दोगाना वन

उकड़ू बैठे लोगों पर भिनभिनाने लगे

फिर कुछ लोग उठे बोले कि आइए तोड़े पुरानी – फिलहाल मूर्ति

साथ ना दो हाथ ही दो सिर्फ उठा

झोले में बंद कर एक नई मूर्ति मुझे दे गये

यानी कि आप ही देखें कि जो कभी नहीं है

अपनी एक मूर्ति बनाता हूं और ढहाता हूं

और आप कहते हैं कि कविता की है

क्या मुझे दूसरों की तोड़ने की फुर्सत है ?

Also Read:

“नेताजी क्षमा करें” कविता व्याख्या का संछेप और प्रसंग

संछेप –
प्रस्तुत कविता प्रगतिशील कवि रघुवीर सहाय की प्रमुख कविता है जो आत्महत्या के विरुद्ध काव्य संग्रह में संकलित किया गया है।  रघुवीर सहाय तार सप्तक के प्रमुख कवि के रूप में होते हुए भी , वह एक पत्रकार भी थे। उनके काव्य में शासन – प्रशासन के प्रति आक्रोष भी था। वह जहां भी सामान्य मानव का शोषण करते देखते वह अपने काव्य की धार और तेज करते।

प्रस्तुत कविता व्यंग्यात्मक है जो स्वार्थ परक और चालाक , धूर्त नेताओं के चालबाजी को उजागर करता है। किस प्रकार नेता एक सामान्य जनता को मूर्ख बनाता है , इसमें एक कवि मन कितना विचलित होता है उसकी टीस मार्मिक रूप से व्यक्त हुई है।

प्रसंग –

रघुवीर सहाय दूसरा तार सप्तक के चर्चित कवि के रूप में जाने जाते हैं। वह शोषण तंत्र और अव्यवस्था के विरोध में अपनी आवाज उठाते हैं और आम आदमी की संघर्षशील भूमिका , उसके क्रोध , उसकी व्यवस्था , उसी कमजोरियों के साथ एक अदम्य जिजीविषा को उजागर करते हैं। व्यवस्था के विरुद्ध एक मानवीय संवेदनात्मक संघर्ष के साथ घोषणा करते हैं। रघुवीर सहाय ने जब – जब जनवादी मूल्यों की हत्या होते देखी , तब – तब उन्होंने प्रतिरोध किया। आजादी के 20 वर्ष बाद भी जब आम आदमी संवैधानिक अधिकारों से वंचित रहता है तो उनकी कवि वेवाक हो उठता है।

यह कविता आत्महत्या के विरुद्ध काव्य संग्रह से उद्धृत है।जिस प्रकार से देश के बड़े नेताओं ने भोली-भाली जनता को झूठे और खोखले वायदे किए और उसको पूरा ना होने पर एक कवि का मन विचलित होता है और उसकी टीस कविता के रूप में प्रकट होती है। कवि ने स्वार्थ परक नेताओं उनके चालबाजों को और तथाकथित बुद्धिजीवी वर्ग को व्यवस्था के साथ खिलवाड़ करते प्रकट किया है। एक कवि मन किस प्रकार इस प्रकार की विसंगतियों को देखकर छटपटाता है , “नेता छमा करें” कविता में समाहित है।

लोग , मेरे  ……………………………………………………………………………………… मैं तुम्हार साथ आ नहीं सकता। । 

व्याख्या –
कवि यहां स्पष्ट कर देना चाहते हैं कि , वह केवल एक कवि है , एक लेखक हैं।  कवि कहता है कि वह सिर्फ साहित्य लेखन करता है और इसी के माध्यम से देश के बहुसंख्यक वर्ग से जुड़ता है। कवि कहता है कि मेरे देश के लोगों मैं कवि हूं इसलिए मैं तुम्हें रोटी नहीं दे सकता और ना उसके साथ गम। जिस प्रकार नेता चुनाव से पूर्व रोटी देने की बात करते हैं , उन्हें सुख – सुविधा देने की बात करते हैं , किंतु चुनाव के बाद जनता को केवल गम ही नसीब होता है।इसलिए कभी कहता है कि मेरे देश के लोगों मैं कवि हूं , मैं तुमसे झूठे वादे नहीं कर सकता। मैं तुम्हें रोटी खाने को नहीं दे सकता और ना ही गम। देश के इस वर्ग की आशाएं और आकांक्षाएं भी कवि और बुद्धिजीवी वर्ग के साथ जुड़ती है।

कवि लोगों के अंधविश्वासों पर भी दृष्टि डालते हुए कहते हैं , लोग जहां आज भी कर्म के बजाय ईश्वरीय चमत्कार का आस लगाए हुए हैं , मैं उन लोगों का यह भ्रम भी दूर नहीं कर सकता।आम आदमी अपनी समस्याओं का समाधान कवि के साहित्य और उसके कारण से व्यवस्था में परिवर्तन के जरिए खोजना चाहता है।  लेकिन कवि इस संबंध में सार्थकता से परिचित है इसलिए वह स्पष्ट कहना चाहता है कि , वह भौतिक और आध्यात्मिक दोनों धरातल से  ऊपर साधारण जनता के लिए भी कुछ करने में असमर्थ है। साहित्य की शक्ति सीमित है। वह लोगों में बौद्धिक चेतना जगाने का कार्य करता है , साधारण लोग के लिए मूलभूत आवश्यकताओं  – रोटी , कपड़ा और मकान जैसी समस्याओं की पूर्ति करने में भी कभी असमर्थ है।  कवि तो साहित्य से बौद्धिक क्षमता जगाने की क्षमता पर प्रश्न लगाता है , और यह स्वीकारता है कि ईश्वर या आध्यात्मिक विषयों को लेकर लोगों ने जो अनेक प्रकार का भ्रम पाले हुए हैं उसका निवारण भी नहीं कर सकता। कवि देश के नेताओं पर भी दृष्टिपात करता है।  नेता वर्ग भी कवि को अपने साथ जोड़ना चाहता है व्यवस्था स्तवन कराना चाहता है , लेकिन कवि सामर्थ्यहीन हीन हो सकता है ,पर विवेकहीन नहीं है। वह स्पष्ट करता है कि वह नेता वर्ग या व्यवस्था वर्ग के साथ नहीं आ सकता , उनका साथ किसी कीमत पर नहीं दे सकता।

इसलिए कवि यह कहना चाहता है लोगों में श्रेष्ठ लोगों अर्थात नेता बुद्धिजीवी और अन्य उच्च वर्ग के लोगों मैं तुम्हारे साथ नहीं आ सकता मुझे क्षमा करो मैं तुम्हारे दिखावे और छल – कपट के साए से दूर रहना चाहता हूं , और लेखन का कार्य करना चाहता हूं।

यानी  ………………………………………………………………………………………… कौन हूँ मैं। ।

व्याख्या – 
कवि पाठकों और श्रोताओं को संबोधित करते हुए कहता है कि ऐसे लोग जो साहित्यजीवी नहीं है , और जो स्वयं साहित्य लेखन नहीं करते उन्हें यह जानना चाहिए कि कवि स्वयं एक और है , और एक और सारी जनता कवि और जनता के बीच केवल लगाओ है क्या वह सचमुच का अलगाव कहा जा सकता है। कवि का लक्ष्य तो जनता है , उसकी कविता का विषय भी जनता है इसलिए कभी जनता के बारे में यह मानता है कि सारी जनता उसकी अपनी है। वह जनता की संवेदना को अपनी संवेदना बनाकर साहित्य लेखन करता है। किंतु जनता को अपना मानने वाला उसके सुख – दुख की चिंता करने वाला वह व्यक्ति कौन है ? जनता को उससे यह जरूर पूछना चाहिए आज जनता किसी पर भी सहज में विश्वास करने वाली नहीं है , इसलिए कवि के बारे में भी उसे पूछताछ करनी चाहिए।

मैंने कोशिश  …………………………………………………………………………………  दो सिर्फ उठा। ।

व्याख्या –

कभी लोगों में अपनत्व और उसके प्रति सहानुभूति अनुभव कर उसके प्रति अपनी भावनाएं अभिव्यक्त करना चाहता है। स्वाभाविक रूप से वह ऐसा नहीं कर पाता , वह जनता है कि लोग उसकी बात को सहज रूप से विश्वास नहीं कर पाएंगे इसलिए उसे अपनी बात कहने के लिए प्रयत्न करना पड़ता है।कवि जब प्रयत्न पूर्वक अपनी बात उन तक पहुंचा पहुंचाता है और उनसे कहता है कि वह उन्हें प्यार करता है और उसके शब्द लोगों के लिए अर्थहीन से हो जाते हैं। कवि के शब्दों का महत्व लोगों के लिए केवल इतना है जितना दूर से आती आवाज से नियुक्त दोगाने का कभी अपनी बात इससे भी आगे बढ़ाकर कहता है कि उसके शब्दों को अक्सर दोगाने के प्रभाव के बराबर भी नहीं।  वह शब्द ऐसे लगते हैं जैसे सोच के लिए गए व्यक्तियों पर मक्खियों के भिनभिनाहट इन मक्खियों के भिनभिनाहट से व्यक्ति किसी ना किसी तरह परेशान रहता है और अचेतन प्रयास से उन्हें उड़ाने का प्रयत्न करता है।कवि के स्नेह प्यार के शब्द को भी चेतना पूर्वक ध्यान देने योग्य नहीं मानता कवि का आह्वान करते हैं कि वह अपने साथ मिलकर रूढ़ियों और व्यवस्था का विरोध करें नई रचना में सहयोग करें। यदि वह सक्रिय सहयोग नहीं भी करना चाहता तब भी कम से कम इन कार्यों में उन्हें समर्थन तो दे ही सकता है।

झोले में  ……………………………………………………………………………………………….. फ़ुरसत है ?

व्याख्या –

कवि जब किसी पुरानी मान्यता या कुरीति का विरोध नहीं कर पाता तब आम जनता उसे समाज का ढांचा सूझाती है। जनता की अपनी सोच है , उनके अपने आदर से उनकी अपनी मान्यताएं हैं। आकांक्षाएं आशा तथा विश्वास है। जनता का अपना एक समाज संरचना का स्वप्न है , उस स्वप्न की प्रतिमूर्ति वह कवियों को सौंप दी है लेकिन कवि उस सिलसिले में कभी अपनी कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं करना चाहता। समाज द्वारा सौंपे गए ढांचे पर कोई प्रतिक्रिया भी नहीं कर पाता असल में इस संबंध में कवि के भी अपने कुछ विचार हैं और आदर्श हैं उसके भी अपने कुछ स्वप्न हैं उन्हीं के अनुरूप समाज और व्यवस्था की वह भी शब्द मूर्ति करता है। वह कविता के जरिए समाज और व्यवस्था संबंधी अपनी कल्पना प्रस्तुत करता है , लेकिन उस कल्पना पर वह स्वयं संतुष्ट नहीं है इसलिए अपनी शब्द मूर्तियों को वह स्वयं खंडित कर देता है।  इस प्रकार के बिलैया विरोधी भाव शब्द चित्र के रूप में जनता के सामने आते हैं और लोग यह कहते हैं कि कवि कविता कर रहा है , पर कवि यहां कहता है कि वह तो अपने विचारों के भवर में इस प्रकार फंसा हुआ है कि दूसरे के विचारों और सपनों को जानने का अवकाश उसके पास नहीं है।  इस तरह कभी केवल एकांगी दृष्टिकोण अपनाकर रह जाता है। उसकी रचना को निरर्थक नहीं कहा जा सकता पर उसकी मान्यताओं विचारों तथा स्वप्नों के कुछ बनता भी नहीं यानी उसके विचारों से कोई वर्ग लाभान्वित नहीं रह पाता।

काव्य सौंदर्य – 

  • कवि  कहना चाहता है कि यद्यपि समानता सक्रिय है।
  • कवि की और किओ ध्यान नहीं देता
  • इन पंक्तियों में बुद्धिजीवियों की आत्मा की स्थिति की और कवि का संकेत है।
  • कवि यहां साहित्यकार की अंतर्मुखी प्रवृत्ति प्रस्तुत करता है।
  • इस कविता में उसकी यह कोशिश महत्वपूर्ण है की कवी अपने को नेता और लालच देने वाले वर्ग से अलग करता है
  • भाषा सरल सुबोध और सहज है |
Also Read:

Leave a Comment

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.