[Pdf] वैदिक कालीन शिक्षा-प्रमुख विशेषताएं, उद्देश्य, प्रणाली vaidik kalin shiksha

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यहा पर वैदिक कालीन शिक्षा vaidik kalin shiksha की प्रमुख विशेषताएं, उद्देश्य, प्रणाली पूरी जानकारी की Pdf भी Download करे

वैदिक शिक्षा भारत की सबसे प्राचीन शिक्षा व्यवस्था है। भारत में अतीत से ही वैदिक शिक्षा का प्रचलन था। जिस समय विश्व में शिक्षा नाम की कोई चीज नहीं थी उस समय भारतीय समाज में वैदिक शिक्षा का प्रचलन था। वैदिक शिक्षा गुरुकुल में हुआ करती थी, शिष्य अपने गुरु के सानिध्य में रहकर शिक्षा प्राप्त किया करता था। यह शिक्षा ना केवल सामाजिक थी बल्कि अस्त्र-शस्त्र, संगीत, राजनीति, ज्योतिष, खगोल  आदि से भी जुड़ा हुआ था

Vedic shiksha notes in hindi

भारत के प्राचीन शिक्षा प्रणाली व्यवहारिक जीवन की शिक्षा थी। वैदिक शिक्षा बाल केंद्रित नहीं था। वर्तमान में शिक्षा बाल केंद्रित है। शिक्षा का उद्देश्य बालक को केंद्र में रखकर त्यार किया जाता है वह वैदिक काल में नहीं था। शिक्षा व्यक्ति का सामाजिक और राष्ट्रीय प्रगति के लिए अनिवार्य तत्व है। इस तथ्य को प्राचीन भारतीयों ने भली-भांति समझा था। इसी कारण भारतीय सभ्यता के प्रारंभिक काल से ही भारत में शिक्षा की उचित व्यवस्था की गई थी। गुरु शिक्षार्थी को अपना सानिध्य देते थे और शिक्षा प्रदान किया करते थे। वैदिक शिक्षा भारत की अपनी मौलिक शिक्षा व्यवस्था थी।

भारतीय गुरुकुल में देश ही नहीं अपितु विदेश से आए हुए शिक्षार्थी भी शिक्षा ग्रहण किया करते थे। विदेशी यात्रियों ने भी अपने पुस्तकों और यात्रा वृत्तांत में यहां की शिक्षा व्यवस्था का जिक्र किया है। भारत में तक्षशिला, नालंदा जैसे विश्वविद्यालय हुआ करते थे जिसमें चाणक्य जैसे गुरु का सानिध्य छात्रों को मिला करता था। माना जाता है तक्षशिला के विद्यालय के प्रहरी भी संस्कृत में वार्तालाप किया करते थे ऐसे श्रेष्ठ वैदिक शिक्षा गुरुकुल का प्रमाण कहीं और देखने को नहीं मिलता।

भारतीयों का दृष्टिकोण सदैव से ही आध्यात्मिक रहा है। अतः उन्होंने सभी शिक्षा में आध्यात्म का समावेश किया है। भारतीय शिक्षा प्रणाली में आध्यात्म का विशेष महत्व है। शिक्षा मानव को मोक्ष, मुक्ति का मार्ग है। भारतीय आध्यात्मिक चिंतन का प्रमुख उद्देश्य मोक्ष प्राप्ति था, जीवन के इसी परम उद्देश्य की प्राप्ति के लिए ही सभ्यता के विभिन्न अंगों और उपांगों का विकास हुआ। राजनीतिक, सामाजिक और धार्मिक व्यवस्था के सभी सिद्धांत इसी चरण उद्देश्य को प्राथमिकता देकर बनाए गए थे। प्राचीन भारत में शिक्षा का मुख्य उद्देश्य मोक्ष की प्राप्ति थी। ज्ञान – विज्ञान आदि जितने भी क्षेत्र में शिक्षा का प्रयोग हुआ है, सबमें मोक्ष और सांसारिक मुक्ति का साधन शिक्षा को माना गया है। जीवन की क्षणभंगुर तक और भौतिक सुखों की सराहनीयता  का पाठ शिक्षा द्वारा ही पढ़ाया गया

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वेद कालीन शिक्षा जानने के स्रोत

वेद कालीन शिक्षा को ऐसे तो लोगों ने समय बांधने का प्रयत्न किया है। किंतु वेदों की रचना कब हुई इस पर विद्वानों में मतभेद है। वेद भारत का प्राचीनतम साहित्यिक ग्रंथ है माना जाता है। वेदों की रचना स्वयं ईश्वरीय शक्ति के द्वारा हुई है, वेद किसी व्यक्ति विशेष की रचना नहीं है। वह मानवेत्तर शक्ति ईश्वर द्वारा स्वयं निर्मित है। ऋषियों ने अपने तपोबोल से इस ज्ञान को समझा और उसे अपनी भाषा प्रदान की। अर्थात वेदों की रचना की भारतीय परंपरा के अनुसार ईश्वरीय है, वेदव्यास को वेदों का संकलन कर्ता माना जाता है। वर्तमान समय में नासा जैसे अंतरिक्ष विज्ञान की संस्था भी भारतीय वेदों का अध्ययन कर रही है, और उस पर प्रयोग कर रही है। जिसमें उसे निरंतर सफलता मिलती जा रही है। वेदों में वर्णन देखने यहां भी मिलता है, दूसरा ग्रह हुआ करता है, ग्रह पर एक मानव कैसे आ जा सकता है,  पृथ्वी घूमती है।

इस प्रकार की सभी जानकारी वेदों में संकलित थी, जिसे आज नासा अक्षरसः पालन कर उसको नया रूप दे रहा है। वैदिक साहित्य की रचना की पूर्व तिथि भारत में आर्यों के आगमन से संबंधित है। आर्यों का भारत में आगमन के विषय में मतांतर है, वैदिक भाषा की कठिनता अर्थ गंभीरता और प्राचीनता के कारण मंत्रों का सही तात्पर्य और अर्थ समझना अत्यधिक कठिन है। अतः इसके आधार पर भी रचना काल का निर्धारण संभव नहीं है। पुरातत्व संबंधी साधनों के द्वारा भी इस विषय में कोई प्रमाण उपलब्ध नहीं हो सका है।
वैदिक साहित्य को चार वर्गों में विभाजित किया जाता है – १ संहिता २ ब्राह्मण ३ आरण्यक और ४ उपनिषद।

इसके अतिरिक्त वेदांग और सूत्र भी इसी साहित्य के अंतर्गत आते हैं।  संहिता का शाब्दिक अर्थ है ‘संग्रह’ संहिताओं में देवताओं की स्तुतियों के मंत्रों का संग्रह किया गया है। सहिताएं चार है – १ ऋग्वेद संहिता  २ आयुर्वेद संहिता  ३ सामवेद संहिता और  ४ अथर्ववेद संहिता।

ऋग्वेद संहिता –

भारतीय आस्था के अनुसार ऋग्वेद हिंदू संस्कृति का सबसे प्राचीनतम और आधारभूत ग्रंथ माना जाता है। इस ग्रंथ के माध्यम से भरतीय पुरातन सभ्यता और संस्कृति का पूर्ण रूप देखने को मिलता है। इस ग्रंथ में एक विकसित सभ्यता का दर्शन होता है, यह ग्रंथ अति दुर्लभ है जिसके आधार पर ऐसा प्रतीत होता है कि ऋग्वेद के रचना काल तक भारतीय सभ्यता का पर्याप्त विकास हो चुका था। ऋग्वेद में भरतीय शिक्षा का व्यापक रूप देखने को मिलता है। इसके पूर्व शिक्षा प्रणाली तथा भारतीय संस्कृति का पर्याप्त विकास हो चुका था। ऋग्वेद में शिक्षा का विकसित और सुनियोजित रूप ही प्राप्त होता है।

ऋग्वेद में 10 मंडल 1028 सुख 10580 ऋचा हैं इन 10 मंडलों में से दूसरे मंडल से लेकर सातवें मंडल की रचना छह प्रमुख ऋषियों ने की थी। इन मंडलों का विकास इन राशियों के परिवार के सदस्यों द्वारा परवर्ती काल में हुआ था, विद्वानों के अनुसार ऋग्वेद की रचना पंजाब में हुई थी क्योंकि वैदिक काल में सभ्यता का केंद्र पंजाब था जिसे वर्तमान समय में हम हड़प्पा सभ्यता या सिंधु घाटी  नाम से अध्ययन करते हैं। यही से जहां से आर्य निरंतर पूर्व की ओर बढ़ रहे थे ऐसा मन जाता है

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सामवेद –

सामवेद संगीत प्रधान वेद है। इसमें कुल 1549 छन्द है। सामवेद के स्वर गेय हैं। माना जाता है की संगीत का सूत्रपात सामवेद से हुआ है।  ऋग्वेद में से लिए गए मंत्र भी सामवेद के स्वरों के कारण भिन्न हो गए हैं। इसके अंतर्गत सोम संस्कार के समय गाए जाने वाले मंत्रों का संग्रह इन मंत्रों का गान उद्गाता पुरोहित करते थे। प्रत्येक मंत्र के लिए निश्चित स्वर होते थे, सामवेद का उद्देश्य संगीत का ज्ञान कराना है। इसे संगीत का प्राचीनतम ग्रंथ कहना अत्यधिक सत्य होगा। भारतीय शिक्षा प्रणाली में सामवेद की शिक्षा का एक अहम भूमिका रहा करती थी, जहां शिक्षार्थियों को अर्थ शास्त्र और राजनीति की शिक्षा दी जाती थी वही हृदय की कोमलता के लिए सामवेद की शिक्षा भी दी जाती थी।

यजुर्वेद  –

यजुर्वेद कर्मकांड प्रधान वेद है। प्राचीन से वर्तमान समय तक जितने विधि विधान कारण काण्ड आदि होते है सभी का वर्णन आयुर्वेद में देखने को मिलता है। यज्ञ के समय कर्मकांड के बढ़ जाने के कारण इसके अंतर्गत क्रियाएं भी बढ़ गई और पुरोहितों के लिए इन क्रियाओं का अध्ययन आवश्यक हो गया। अतः विशेष प्रकार के पुरोहितों को इस दृष्टिकोण से प्रशिक्षित होना होता था। पुरोहितो को सभी कर्मकांड मन्त्र आदि का अध्ययन यजुर्वेद में आसानी से मिल जाता है। यज्ञ की क्रिया विधि और वास्तविक कार्य प्रणाली के प्रत्येक सूक्ष्म विवरण को जानते थे, इस कार्य में इन्हें विशेष योग्यता प्राप्त थी। जैन मंत्रों का उच्चारण इस वर्ग के पुरोहित देवताओं के आह्वान के लिए करते थे , उन्हें ही यजुर्वेद के अंतर्गत संग्रहित किया गया था। भारतीय गद्य का प्रारंभिक रूप यजुर्वेद में ही मिलता है, जो परवर्ती काल में जाकर और भी विकसित हुआ। इस ग्रंथ से ज्ञात होता है कि आर्यों के सामाजिक धार्मिक जीवन में पर्याप्त परिवर्तन हो चुका था वह अब सिंध की घाटी से कुरुक्षेत्र की ओर पहुंच चुके थे।

अथर्ववेद –

अथर्ववेद तीनो वेदो में शेष सामग्री का संकलन है। अथर्ववेद अन्य तीन वेदो से बिल्कुल भिन्न है यह धर्म जनसाधारण में प्रचलित लोक और अलौकिक धर्म था जिसमें अनेक विकृत विचार भी सम्मिलित थे इसके अंतर्गत इन प्रकार प्राचीन आर्य धर्म का वह रूप प्राप्त होता है जिसे ऋग्वेद में संग्रहित नहीं किया था। इसकी अनुपस्थिति में यह रूप समाप्त ही हो जाता इसमें 20 कांड  34 परकाठ , 111 अनुवादक 731 सूक्त और 5839 मंत्र हैं। अन्य वेदों में अधिकतर मंत्र ऋग्वेद से ही लिए गए थे किंतु अथर्ववेद में केवल 1200 मंत्र ही ऋग्वेद के लिए गए हैं शेष मौलिक हैं।

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